मुंबई, 02 अक्टूबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को नागपुर में विजयादशमी और संगठन के शताब्दी समारोह में संबोधित करते हुए कहा कि पहलगाम हमले में आतंकियों ने धर्म पूछकर हिंदुओं की हत्या की थी, जिसका करारा जवाब हमारी सरकार और सेना ने दिया। उन्होंने कहा कि इस घटना ने साफ कर दिया कि कौन हमारा दोस्त है और कौन दुश्मन। भागवत ने कहा कि भारत सभी के साथ दोस्ती चाहता है, लेकिन अपनी सुरक्षा को लेकर अधिक सतर्क और सक्षम रहना ज़रूरी है।
समारोह में भागवत ने आरएसएस संस्थापक डॉ. हेडगेवार को श्रद्धांजलि दी और शस्त्र पूजन किया। इस अवसर पर पूर्व राष्ट्रपति डॉ. रामनाथ कोविंद भी मौजूद रहे। अपने 41 मिनट लंबे भाषण में उन्होंने समाज में बदलाव, सरकारों का रवैया, पड़ोसी देशों की स्थिति, अमेरिकी टैरिफ और अंतरराष्ट्रीय संबंधों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आज पूरी दुनिया में अराजकता है और ऐसे समय में भारत आशा की किरण है। देश की युवा पीढ़ी संस्कृति और राष्ट्रप्रेम से प्रेरित होकर आगे बढ़ रही है और समाज खुद समस्याओं के समाधान की कोशिश कर रहा है। भागवत ने कहा कि दुनिया में कोई भी अकेला नहीं रह सकता, इसलिए आपसी संबंध जरूरी हैं। अमेरिका की नई टैरिफ नीति का असर सब पर पड़ रहा है, इसलिए आत्मनिर्भर बने बिना यह निर्भरता मजबूरी बन जाएगी। उन्होंने पड़ोसी देशों में हो रही उथल-पुथल और हिंसा पर चिंता जताई और कहा कि इस तरह के हिंसक बदलाव उद्देश्य पूरा नहीं करते, बल्कि अराजकता फैलाते हैं और बाहरी ताकतों को दखल का मौका मिल जाता है।
उन्होंने कहा कि भारत विविधताओं का देश है और यही उसकी ताकत है। हमारी एकता का आधार हमारी विविधता है और समाज में आपसी सम्मान जरूरी है। लेकिन आज इन विविधताओं को भेद में बदलने की कोशिश हो रही है, जबकि सबका सम्मान होना चाहिए। भागवत ने कहा कि समाज को सजग रहना होगा, क्योंकि अराजकता के हालात युवाओं को भटका सकते हैं। संघ प्रमुख ने कहा कि भाषण देने वाले केवल शब्दों से नहीं, बल्कि अपने जीवन से उदाहरण पेश करें। जैसा देश चाहिए वैसा खुद बनना होगा। आदतें बदले बिना बदलाव नहीं आता। उन्होंने कहा कि संघ ने सौ साल में कई उतार-चढ़ाव देखे लेकिन राजनीति में शामिल नहीं हुआ। संघ का अनुभव है कि व्यक्ति निर्माण से समाज परिवर्तन होता है और फिर व्यवस्था बदलती है। मोहन भागवत ने कहा कि पूरी दुनिया की नज़र आज भारत पर है। अशांति और उथल-पुथल के बीच विश्व को लगता है कि भारत ही मार्गदर्शन देगा। नियति भी यही चाहती है कि भारत धर्म और आध्यात्मिक दृष्टि के साथ सबको आगे बढ़ने का रास्ता दिखाए। उन्होंने कहा कि बदलाव धीरे-धीरे करना होगा ताकि व्यवस्था उलटने के बजाय सही दिशा में आगे बढ़ सके।